Vol. 41 No. 1 (2017): प्राथमिक शिक्षक
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‘बरखा’ क्रमिक पुस्तकमाला में जेंडर के मुद्दे

उषा शर्मा
प्रोफेसर, प्रारंभिक शिक्षा विभाग, एन.सी.ई.आर.टी., नई दिल्ली

Published 2025-06-27

Keywords

  • भाषा और जेंडर,
  • पठन कुशलता

How to Cite

शर्मा उ. (2025). ‘बरखा’ क्रमिक पुस्तकमाला में जेंडर के मुद्दे. प्राथमिक शिक्षक, 41(1), p.5–15. http://14.139.250.109:8090/index.php/pp/article/view/4472

Abstract

भाषा और जेंडर के मुद्दे बेहद अहम हैं। वह इसलिए क्योंकि भाषा अपने माध्यम से बहुत कुछ संप्रेषित करती है और वह अपने ‘बहाने’ ऐसा बहुत कुछ ‘कहने’ की भी सामर्थ्य रखती है जो सतही तौर पर आसानी से नजर आने वाला नहीं है। ‘पंक्तियों के बीच पढ़ना’ इसी को कहते हैं। जेंडर संबंधी संवेदनशीलता या असंवेदनशीलता भी इस भाषा के माध्यम से ‘कही’ जाती है।

एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा विकसित ‘बरखा’ क्रमिक पुस्तकमाला बच्चों में पठन कुशलता, चिंतन-क्षमता का विकास और विभिन्न मुद्दों के संदर्भ में अपने ‘हिस्से’ का अर्थ गढ़ने की दिशा प्रशस्त करती है। प्रस्तुत लेख जेंडर संबंधी विमर्श का विस्तार है कि ‘बरखा’ क्रमिक पुस्तकमाला की चालीस कहानियों में जेंडर की व्यापकता किस प्रकार हुई है और किस प्रकार से किसी जेंडर विशेष से जुड़ी रूढ़िवादिता को तोड़ने का सफल प्रयास किया गया है — इसकी जाँच करने की कोशिश की गई है। बबली, जीत, काजल, माधव, रानी, जमाल, मिली आदि सभी पात्रों की अस्मिता और पहचान को बरकरार रखने की संवेदना का स्पंदन इन सभी कहानियों में बखूबी किया जा सकता है। समावेशी शिक्षा के संदर्भ में जेंडर संवेदनशीलता को ‘बरखा’ क्रमिक पुस्तकमाला में टटोलने का प्रयास इस लेख में किया गया है।