Vol. 41 No. 2 (2017): प्राथमिक शिक्षक
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बाल मन की अभिव्यक्ति और हिन्दी कहानियाँ

Published 2025-06-27

How to Cite

अली म. (2025). बाल मन की अभिव्यक्ति और हिन्दी कहानियाँ. प्राथमिक शिक्षक, 41(2), p.5–8. http://14.139.250.109:8090/index.php/pp/article/view/4452

Abstract

आधुनिकता की दौड़ में मनुष्य आज इतना व्यस्त हो गया है कि उसके पास अपने परिवार और संतान के लिए भी समय नहीं रह गया है। ऐसी स्थिति में परिवार का एक सदस्य, जो इस आधुनिकता से अनजान है, इन सबके बीच अपना बचपन खो बैठता है। अकेलापन, घुटन, मानसिक पीड़ा उसके मित्र बन जाते हैं। कहीं भूख, कहीं बेबसी, कहीं माँ-बाप की कमी, कहीं पारिवारिक कलह उसके लिए कठिन परिस्थितियाँ उत्पन्न कर देती हैं। हालात यह हैं कि बालक सामान्य बच्चे से प्रौढ़ व्यक्ति में परिवर्तित हो जाता है। उसका बचपन खेल-खिलौनों और शरारतों के स्थान पर परिस्थितिगत द्वंद्व के मध्य बीतने लगता है। उसका यह अकेलापन ही उसके प्राकृतिक मानसिक विकास को अवरुद्ध करके उसके चरित्र को विघटित कर देता है। प्रस्तुत लेख में बाल मन की इन्हीं अवस्थाओं और उनकी अभिव्यक्ति के स्वर को हिंदी कहानियों के विश्लेषण के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।