Published 2025-03-12
Keywords
- संरक्षण,
- सूचना-प्रौद्योगिकी,
- बहुभाषिकता,
- अर्थव्यवस्था
How to Cite
Abstract
अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बाद सूचना-प्रौद्योगिकी ने प्रत्यक्षतरू व्यापक समाज को प्रभावित किया है, वहीं दूसरी तरफ इसकी शिकार वैश्विक बहुभाषिकता रही है। आम जन मानस में भाषा की महत्ता को कभी उस तरह से स्वीकार नहीं किया जाता है, जैसे किसी राज्य-समाज के दूसरे संसाधन होते हैं। क्योंकि कम से कम प्रथम भाषा के अर्जन में मनुष्य को कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करना पड़ता है और एक बच्चे के शारीरिक-मानसिक विकास के साथ भाषिक क्षमता का विकास होता है। जिस परिवेश में एक बच्चा भाषा सीखता है, उस परिवेश में आज इंटरनेट समर्थ मोबाइल का वर्चस्व तेजी से बढ़ रहा है। ध्यान रहे कि मोबाईल की अपनी भाषा है और उसका वर्चस्व भी। इस प्रकार देश के बहुभाषिक और बहुसांस्कृतिक समाजों की आगामी पीढ़ी के साथ उनकी स्थानीय भाषा रहेगी, इस पर फिलहाल तो संशय है। फिर इसका दूसरा दौर वह आएगा, जबकि आज क्लाउड-कंप्यूटिंग के लिए आवश्यक डाटा और सूचना की भाषा अँग्रेजी होगी, आने वाले समय में उस डाटा के प्रभाव मात्र के कारण स्थानीय भाषाओं का संघर्ष और बढ़ जाएगा, क्योंकि डाटा/सूचना आधारित बाजार में अँग्रेजी वर्चस्व नए सिरे से स्थापित हो रहा है, जो अँग्रेजी के तो समर्थन में है, लेकिन भारतीय बहुभाषिकता के विरुद्ध है।
यहाँ वैश्विक और स्थानीय प्लेटफार्मों पर सूचना-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भाषाओं के संकट पर चर्चा की गई है, जिससे जागरूकता बढ़े। इसमें अंग्रेजी, सूचना-प्रौद्योगीकीय साधन और बाजार के गठबंधन पर ध्यान आकर्षित किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप दुनिया में भाषाओं पर खतरे होंगे।