खंड 41 No. 3 (2017): प्राथमिक शिक्षक
Articles

अस्मिता पर प्रहार करती कहावतें

सुरभि चावला
विद्यार्थी, अम्बेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली

प्रकाशित 2025-06-26

संकेत शब्द

  • लोक व्यवहार,
  • कहावतों का इस्तेमाल,
  • अध्यापकों के भाषायी व्यवहार

सार

लोक व्यवहार की भाषा हो या फिर साहित्य की भाषा, कहावतों का इस्तेमाल बात को अधिक संप्रेषणीय बनाता है। कहावतें भारतीय भाषाओं की ही नहीं, अपितु हर देसी-विदेशी भाषा का अभिन्न अंग हैं। कहावतें बात में रोचकता का संचार करती हैं और बात को प्रभावशाली बनाती हैं। सुनने वाले को नैतिकता का पाठ पढ़ाना हो, नफ़े-नुकसान की बात समझानी हो, नीचा दिखाना हो या फिर आत्मविश्‍वास पैदा करना हो, कटाक्ष करना हो या किसी बात का सार कहना हो, कहावतें हर स्थिति में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

"जाके पैर न फटे बिवाई, ओ का जाने पीर पराई!" यह कहावत संवेदनशीलता की बात करती है, तो वहीं "तेते पाँव पसारिए जेती लंबी सौरी" समझदारी से जीवन निर्वाह करने की सलाह देती है। इस तरह की कहावतें अप्रत्यक्ष रूप से वर्ग, वर्ण और धर्म भेद की संरचनाओं को मजबूती देती हैं। पितृसत्ता, जातिवाद, नस्लवाद, क्षेत्रवाद, संप्रदायवाद, धर्मवाद और भी बहुत कुछ इन कहावतों से झांकता है और व्यक्ति विशेष को गहरे तक चोट पहुँचाता है।

प्रस्तुत शोध पत्र अध्यापकों के भाषायी व्यवहार का अवलोकन आधारित अध्ययन है। इस अध्ययन के अंतर्गत शिक्षा निदेशालय, दिल्ली के दक्षिण पश्चिम जिले के पाँच विद्यालयों को आधार बनाते हुए उनके उच्च प्राथमिक स्तर की कक्षाओं में अध्यापन कर रहे अध्यापकों के भाषायी व्यवहार का शिक्षण प्रक्रिया के दौरान अवलोकन किया गया।