Published 2025-06-27
Keywords
- व्यावहारिक गणितीय ज्ञान,
- पाठ्यपुस्तकीय गणितीय ज्ञान
How to Cite
Abstract
बच्चों में भिन्न संख्याओं के प्रति जो अस्पष्ट समझ, भ्रम अथवा डर दिखाई देता है, उसके विभिन्न कारणों में से एक कारण यह भी है कि बच्चे दैनिक जीवन या व्यवहार में इन संख्याओं की जो समझ एवं अवधारणा लेकर स्कूल आते हैं, वह समझ पाठ्यपुस्तक में प्रस्तुत किए जा रहे तरीकों से मेल नहीं खा पाती। इस तरह देखा जाए तो ‘व्यावहारिक गणितीय ज्ञान’ और ‘पाठ्यपुस्तकीय गणितीय ज्ञान’ में तालमेल नहीं होने के कारण बच्चे भ्रमित हो जाते हैं। जैसे—भिन्नों की गुणा सिखाने में एक सामान्य तरीका यह अपनाया जाता है कि अंश की अंश से तथा हर की हर से गुणा करके दोनों गणनाफलों को क्रमशः अंतिम परिणाम के अंश तथा हर के रूप में लिखा जाता है।
परंतु क्या इस तरीके से बच्चों को भिन्नों की गुणा की अवधारणा स्पष्ट हो जाती है? भिन्न संख्याएँ केवल ‘अंश’ या केवल ‘हर’ को देखकर नहीं समझी जा सकतीं। हमें अंश और हर दोनों के संबंध को एक साथ देखना होता है, क्योंकि भिन्न संख्या वास्तव में ऊपर और नीचे लिखी गई पूर्ण संख्याओं के विशेष संयोजन के बीच संबंध को दर्शाती है।