Published 2025-06-27
Keywords
- वाचिक परंपरा
How to Cite
Abstract
एक समय था जब हमारे देश में वाचिक परंपरा का वर्चस्व था। प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार के साथ पढ़ने और लिखने की परंपरा ने अपनी जड़ें जमानी शुरू कीं और आज औपचारिक-अनौपचारिक संवाद, रोज़मर्रा के कार्य, आपसी लेन-देन, मनोरंजन, व्यापार—सभी क्षेत्रों में पढ़ना-लिखना महत्त्वपूर्ण हो गया है।प्रारंभिक स्तर पर बच्चों को पढ़ना-लिखना सिखाने हेतु विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ करवाई जाती हैं। किंतु फिर भी बच्चे बिना पढ़ना-लिखना सीखे ही विद्यालयों से बाहर आ रहे हैं, संभवतः कक्षा में रोचकता का अभाव इसका एक कारण है।
बच्चों को कक्षा में बनाए रखने और सीखने-सिखाने की प्रक्रिया से जोड़ने के लिए कहानी और कविता का सहारा लेना अत्यंत आवश्यक है। प्रस्तुत है एक ऐसा अनुभव जिसमें प्रारंभिक कक्षाओं के बच्चों को सरस और मनभावन कविताएँ सुनाकर और गवाकर कक्षा में उनकी सहभागिता और शिक्षा में रुचि को बढ़ाने का सार्थक प्रयास किया गया।