Published 2025-06-26
Keywords
- नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम,
- सतत और व्यापक रचनात्मक आकलन,
- सतत और समग्र मूल्यांकन
How to Cite
Abstract
नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के अनुसार कोई भी बच्चा, जिसका स्कूल में दाखिला हो गया है, उसे किसी भी कक्षा में रोका नहीं जाएगा और न ही निकाला जाएगा, जब तक कि वह अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण नहीं कर लेता है। कई शिक्षक 'अनावरोधन' का अर्थ 'कोई परीक्षण नहीं' के रूप में लगाते हैं और बच्चों का मूल्यांकन बिल्कुल नहीं करते, जिसके परिणामस्वरूप जब तक बच्चे प्राथमिक स्तर की अंतिम कक्षा में नहीं पहुँच जाते, प्रायः किसी को भी उनके सीखने की स्थिति का पता नहीं होता। यदि बच्चों का मूल्यांकन नहीं करें और उन्हें कक्षोन्नति कर दें तो क्या यह शिक्षा की गुणवत्ता पर असर नहीं डालेगा? उपरोक्त संदर्भ में यहाँ पर एक प्रश्न उठता है कि क्या बच्चों को उसी कक्षा में रोका जाए? प्रस्तुत लेख के अनुसार, यदि किसी बच्चे को कक्षा में फेल कर दिया जाता है तो यह उसके लिए सजा है। सामाजिक भेदभाव के कारण ज़्यादा संभावना यह है कि बच्चा स्कूल आना ही बंद कर दे।
अनावरोधन नीति के पीछे शैक्षिक दर्शन यह है कि बच्चा नियमित रूप से यदि विद्यालय आता है तो उसके सीखने के स्तर को लगातार परखा जाए और यदि उसे सीखने में दिक्कत आती है तो समस्या ज़रूरी नहीं कि बच्चे में हो, यह कहीं और भी हो सकती है। इसके लिए बच्चे को फेल करने की सजा नहीं देनी चाहिए। विद्यालय को बच्चे के सीखने में आई दिक्कत को खोजकर सही तरीके से कार्य करना चाहिए। इस तरह की प्रक्रिया तभी संभव है जब बच्चे का पूरी तरह से सतत और समग्र मूल्यांकन किया जाए।
सीखने की संप्राप्ति केंद्रित सतत और व्यापक रचनात्मक आकलन से बच्चे के सीखने का पता लगेगा और इससे अनावरोधन का उद्देश्य भी पूर्ण होगा।