Vol. 40 No. 4 (2016): प्राथमिक शिक्षक
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गणितीय डर — एक विद्यालयी समस्या

संदीप कुमार
शोधार्थी, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी
अंजली वाजपेयी
प्रोफेसर, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी

Published 2025-06-20

How to Cite

कुमार स., & वाजपेयी अ. (2025). गणितीय डर — एक विद्यालयी समस्या. प्राथमिक शिक्षक, 40(4), p.16-20. http://14.139.250.109:8090/index.php/pp/article/view/4292

Abstract

गणित को स्कूली विषयों में एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में जाना जाता है। गणित को पढ़ाने-लिखाने का उद्देश्य केवल अंकों और संक्रियाओं की जानकारी देना भर नहीं है, अपितु गणित का उद्देश्य व्यक्ति में ऐसी क्षमता का विकास करना है जिससे उसमें तर्क क्षमता, विश्लेषण क्षमता, सोचने-समझने इत्यादि का गुण विकसित हो सके (राष्ट्रीय शिक्षा नीति—1986)। गणित हमारे दैनिक जीवन से भी जुड़ा हुआ है। हम अपने जीवन में प्रतिदिन गणितीय संप्रत्यय, जैसे— जोड़ना-घटाना, गुणा-भाग, प्रतिशत, अनुपात, लाभ-हानि इत्यादि का प्रयोग करते हैं। दुकानदार, मजदूर, किसान, व्यवसायी, डॉक्टर और इंजीनियर आदि सब कहीं-न-कहीं गणितीय ज्ञान का प्रयोग प्रतिदिन करते हैं। चूँकि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन के हर दिन में गणित का प्रयोग करता है, इसलिए गणित विषय की महत्ता और बढ़ जाती है। कोठारी आयोग (1964–66) ने सिफारिश की थी—“विद्यालयी स्तर पर बच्चों का बौद्धिक स्तर एवं तार्किक क्षमता विकसित करने के लिए विद्यालयी विषयों में गणित का महत्वपूर्ण स्थान होना चाहिए।”