Vol. 39 No. 02 (2018): भारतीय आधुनिक शिक्षा
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पढ़ने की प्रक्रिया का समाज-सां स् कृ तिक और आलोचनात्मक परिप्रेक्ष्य

Published 2025-03-17

Keywords

  • डिकोडिं ग,
  • समाज-सां स्कृतिक

How to Cite

रजनी. (2025). पढ़ने की प्रक्रिया का समाज-सां स् कृ तिक और आलोचनात्मक परिप्रेक्ष्य. भारतीय आधुनिक शिक्षा, 39(02), p. 60-67. http://14.139.250.109:8090/index.php/bas/article/view/3932

Abstract

पढ़ना दन
ुिया में सबसे स्वाभाविक प्रक्रिया है। एक बच्चा जिस तरह अपने आस-पास के परिवेश की समझ बनाता
है, ठीक उसी प्रकार वह लिखित प्रिं
ट की भी समझ बनाता है। यह उतना ही स्वाभाविक है, जितना कि जीवन के
अन्य बोधात्मक कार्य। पढ़ने की पारं
परिक विधि में ‘बॉटम-उप पद्धति’ का प्रचलन था, जिसमें पढ़ना सीखने को
एक खास तरह के क्रम में देखा जाता था। इसमें सर्वप्रथम वर-ध्ण ्वनि, अक्षर, शब्द, वाक्य व अर्थआदि का क्रम ही
प्रचलित रहा। इस परिप्रेक्ष्य के अनसार प ु ढ़ने-लिखने के लिए निर्शिदे त निहितार्थकेवल ‘ डिकोडिं
ग’ में पारं
गत हो
जाना है। जबकि पढ़ने का समाज-सां
स्कृतिक परिप्रेक्ष्य यह कहता है कि पढ़ना एक प्रकार की यात्रा है जिसमें पाठक
अपने जीवन के सं
परू्णअनभु वों को पाठ से जोड़कर उस लिखित पाठ का अर्थनिर्माण करते हैं। इस लेख में पढ़ने
की प्रक्रिया के समाज-सां
स्कृतिक परिप्रेक्ष्य को पिछले दशकों में हु
ए शोध अध्ययनों एवं सैद्धांति की, जैसे—फ्रैंक
स्मिथ (अंडरस्टैंडिं
ग ऑफ़ रीडिं
ग), गडु मैन (रीडिं
ग इज़ ए साइको-लिं
गस्टिु क गेम), एंडरसन का स्कीमा सिद्धांत,
मेटाकॉग्निशन सिद्धांत, रोजनब्लेट की ‘ट्रांज िक्शन थ्योरी ऑफ़ रीडिं
ग’ तथा पढ़ने के आलोचनात्मक उपागम के
माध्यम से समझने का प्रयास किया गया है