Published 2025-03-17
Keywords
- मनोसामाजिक,
- ज्ञानात्मक
How to Cite
Abstract
नष्य का चह ु ुँमखी विकास
ु शिक्षा के द्वारा ही सं
भव है। शिक्षा उद्श्यप दे रू्ण होनी चाहिए। शिक्षा का एक महत्वपर्ण
ू
उद्श्य दे विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है। इसके विभिन्न पहल हैं ू — शारीरिक, मानसिक,
सामाजिक, सं
वेगात्मक तथा आध्यात्मिक। यदि इनमें से किसी एक पहल का विकास न
ू किया गया तो बालक
अपने भावी जीवन के अनेक क्षेत्रों में असफल हो जाएगा। विभिन्न शिक्षाशास्त्री एवं दर्शनदर्श शास्त्री सर्वांगीण
विकास को शिक्षा का महत्वपर्ण उद् ू श्य दे मानते हैं। इन दर्शनदर्श शास्त्रियों एवंशिक्षाशास्त्रियों के अनसार विद् ु यालयों में
विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करने के लिए पाठ्यपस्तु कों के साथ-साथ पाठ्य-सहगामी क्रियाओं को भी उचित महत्व देना चाहिए। ‘राष्ट्रीय पाठ्यचर्याकी रूपरेखा 2005’ में बालक के सर्वांगीण विकास हेतु
अत्यंत महत्वपर्ण स ू झा ु व प्रस्तुत किए गए हैं। ‘राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा’ में भी बी.एड. एवं डी.एल.एड. के
पाठ्यक्रम में पाठ्य-सहगामी क्रियाओ के महत ं ्व को समझते हु
ए इनकी समचित ु व्यवस्था की गई है। प्रस्तुत लेख
में विद्यार्थियों के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में पाठ्य-सहगामी क्रियाएँ कितनी सहयोगी हैं, इस पर विस्ततृ
चर्चाकी गई है। विभिन्न शिक्षा आयोगों, समितियों, अनच्ु छेदों में शिक्षा के साथ-साथ पाठ्य-सहगामी क्रियाओं को अत्यंत महत्वपर्ण मान ू ते हु
ए शिक्षकों को इन क्रियाओ का भली-भाँ ं ति सं
चालन करना आना चाहिए। क्योंकि
व्यक्तित्व ही मनष्य की पहचान है। अच् ु छेव्यक्तित्व का स्वामी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है,
जिससे समाज में उसकी छवि निखरती है। शिक्षकों को व्यक्तित्व के प्रत्येक पहल की समझ होनी चा ू हिए, ताकि
वे विद्यार्थियों के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में सहायक सिद्ध हो सकें ।