Vol. 39 No. 02 (2018): भारतीय आधुनिक शिक्षा
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विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास हेतु पाठ-सहगामी क्रियाओ की उपदेयत

Published 2025-03-17

Keywords

  • मनोसामाजिक,
  • ज्ञानात्मक

How to Cite

रावत र. (2025). विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास हेतु पाठ-सहगामी क्रियाओ की उपदेयत. भारतीय आधुनिक शिक्षा, 39(02), p. 14-21. http://14.139.250.109:8090/index.php/bas/article/view/3925

Abstract

नष्य का चह ु ुँमखी विकास
ु शिक्षा के द्वारा ही सं
भव है। शिक्षा उद्श्यप दे रू्ण होनी चाहिए। शिक्षा का एक महत्वपर्ण

उद्श्य दे विद्यार्थियों के व्यक्‍त‍ित्‍व का सर्वांगीण विकास करना है। इसके विभिन्न पहल हैं ू — शारीरिक, मानसिक,
सामाजिक, सं
वेगात्मक तथा आध्यात्मिक। यदि इनमें से किसी एक पहल का विकास न
ू किया गया तो बालक
अपने भावी जीवन के अनेक क्षेत्रों में असफल हो जाएगा। विभिन्न शिक्षाशास्‍त्री एवं दर्शनदर्श शास्‍त्री सर्वांगीण
विकास को शिक्षा का महत्वपर्ण उद् ू श्य दे मानते हैं। इन दर्शनदर्श शास्‍त्रि‍यों एवंशिक्षाशास्‍त्रि‍यों के अनसार विद् ु यालयों में
विद्यार्थियों के व्यक्‍त‍ित्‍व का सर्वांगीण विकास करने के लिए पाठ्यपस्तु कों के साथ-साथ पाठ्य-सहगामी क्रियाओं को भी उचित महत्व देना चाहिए। ‘राष्ट्रीय पाठ्यचर्याकी रूपरेखा 2005’ में बालक के सर्वांगीण विकास हेतु
अत्यंत महत्वपर्ण स ू झा ु व प्रस्तुत किए गए हैं। ‘राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा’ में भी बी.एड. एवं डी.एल.एड. के
पाठ्यक्रम में पाठ्य-सहगामी क्रियाओ के महत ं ्व को समझते हु
ए इनकी समचित ु व्यवस्था की गई है। प्रस्तुत लेख
में विद्यार्थियों के व्यक्‍त‍ित्‍व के सर्वांगीण विकास में पाठ्य-सहगामी क्रियाएँ कितनी सहयोगी हैं, इस पर विस्ततृ
चर्चाकी गई है। विभिन्न शिक्षा आयोगों, समितियों, अनच्ु छेदों में शिक्षा के साथ-साथ पाठ्य-सहगामी क्रियाओं को अत्यंत महत्वपर्ण मान ू ते हु
ए शिक्षकों को इन क्रियाओ का भली-भाँ ं ति सं
चालन करना आना चाहिए। क्योंकि
व्यक्‍त‍ित्व ही मनष्य की पहचान है। अच् ु छेव्‍यक्‍त‍ित्‍व का स्वामी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्‍त करता है,
जिससे समाज में उसकी छवि निखरती है। शिक्षकों को व्यक्‍त‍ित्व के प्रत्येक पहल की समझ होनी चा ू हिए, ताकि
वे विद्यार्थियों के व्यक्‍ति‍त्‍व के सर्वांगीण विकास में सहायक सिद्ध हो सकें ।