Published 2025-03-17
Keywords
- वैश्विक परिप्रेक्ष,
- अनभु वजनित ज्ञान
How to Cite
Abstract
आज वैश्विक परिप्रेक्ष्य और सामाजीकरण की प्रक्रिया के कें द्र में विद्यार्थी या सीखने वाले को रखकर शिक्षा
के विभिन्न आयाम तय किए जाने की आवश्यकता है। इटली के प्रसिद्ध चित्रकार,अभियं
ता और वैज्ञानिक
लियोनार्डो दा विन्सी का यह मत था कि उन विचारकों के उपदेशों को अनदखा क े रना चाहिए, जिनके तर्क ,
अनभु वों द्वारा सत्यापित न हों (एडलर-पेंड्रिस और एन्थोनी, 2017)। अनभु वजनित ज्ञान, तर्क करने की
गणवत् ु ता में तो वद्धिृ करता ही है, साथ ही समझ के साथ विकास में भी योगदान दता है। ब् े नरूर (1960) ने
अपने एक महत्वपूर्ण लेख ‘द प्रोसेस ऑफ़ एजकुेशन’ में रचनात्मकता के बारे में लिखा है कि विद्यार्थी,
अतीत और वर्तमान की जानकारी के आधार पर अपने ज्ञान का स्वयं निर्माण करता है। इसीलिए पाठ्यचर्या
का निर्माण ऐसी दनिय ु ा को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए जहाँ सामाजिक, सां
स्कृति क और राजनैतिक
परिस्थितियाँ लगातार आस-पास के परिवेश, विद्यालयों और विद्यार्थियों के लक्ष्यों में परिवर्तन करती रहती हैं
(ब्नरूर, 1977)। यह लेख भी रचनात्मक पाठ्यचर्या के द्वारा नए ज्ञान को रचने के लिए विद्यार्थी को सक्षम बनाने
के सकारात्मक पक्षों को उजागर करता है।