Published 2025-03-03
Keywords
- सामाजिक यथार्थ,
- जातिवाद
How to Cite
Abstract
यह अध्ययन साहित्य में सामाजिक यथार्थ के निरूपण की प्रवृत्तियों और इसके प्रभावों का विश्लेषण करता है। साहित्य न केवल कला का एक रूप है, बल्कि यह समाज के विभिन्न पहलुओं, विचारों और संघर्षों को उजागर करने का एक प्रभावी साधन भी है। सामाजिक यथार्थ, जो समाज की वास्तविक स्थितियों, कठिनाइयों और संघर्षों को दर्शाता है, साहित्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेखक अपने रचनात्मक कार्यों के माध्यम से समाज की जटिलताओं और समस्याओं को व्यक्त करते हैं, जो न केवल पाठकों को जागरूक करते हैं, बल्कि समाज में सुधार की दिशा में भी प्रेरित करते हैं।
सामाजिक यथार्थ का निरूपण साहित्य में विभिन्न रूपों में होता है – चाहे वह उपन्यास, कविता, नाटक या लघु कथाएँ हों। इसमें आर्थिक विषमताएँ, जातिवाद, लिंग असमानता, राजनीतिक भ्रष्टाचार, और सामाजिक अन्याय जैसे मुद्दे प्रमुख रूप से उठाए जाते हैं। इस अध्ययन में यह देखा गया है कि साहित्यकार अपनी कृतियों के माध्यम से समाज की वास्तविकता को बिना किसी संशोधन के प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं, ताकि समाज में जागरूकता फैल सके और उत्पीड़ित वर्गों के पक्ष में आवाज उठाई जा सके।