Published 2025-03-03
Keywords
- भारतीय संस्कृति,
- प्राचीन ग्रंथ
How to Cite
Abstract
यह अध्ययन संस्कृत भाषा की उपेक्षा और उसके प्रभावों को विश्लेषित करता है, और यह सिद्ध करता है कि संस्कृत का अवमूल्यन केवल एक भाषा की उपेक्षा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, दर्शन, और इतिहास की उपेक्षा है। संस्कृत न केवल एक प्राचीन भाषा है, बल्कि यह भारतीय ज्ञान परंपरा, साहित्य, और धार्मिक शिक्षा का अभिन्न हिस्सा रही है। प्राचीन भारतीय ग्रंथों, वेदों, उपनिषदों, पुराणों और दर्शनशास्त्रों का आधार संस्कृत भाषा पर ही था, जो भारतीय संस्कृति और सामाजिक ढांचे की नींव थी।
संस्कृत की उपेक्षा से केवल भाषा की संरचनात्मक गिरावट नहीं आती, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर के प्रति हमारी अनदेखी को भी दर्शाती है। इस अध्ययन में यह स्पष्ट किया गया है कि जब हम संस्कृत की उपेक्षा करते हैं, तो हम न केवल एक भाषा को भूलते हैं, बल्कि पूरे भारतीय ज्ञान के भंडार, जैसे विज्ञान, गणित, दर्शन और साहित्य के अद्वितीय योगदान को भी नजरअंदाज करते हैं।
संस्कृत के ज्ञान से जुड़ी आधुनिक शिक्षा की उपेक्षा समाज के मानसिक और बौद्धिक विकास को प्रभावित करती है। इस शोध में यह भी बताया गया है कि संस्कृत के पुनरुद्धार से शिक्षा, समाज, और संस्कृति में संतुलन और समृद्धि की प्राप्ति हो सकती है। भारतीय युवाओं में संस्कृत के प्रति रुचि जागरूकता पैदा करने के लिए इसे शिक्षा के कक्षों और शैक्षिक पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।