प्रकाशित 2025-03-13
संकेत शब्द
- समावेशी शिक्षा,
- दृष्टि बाधिता
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सार
समावेशी शिक्षा की आवष्यकता प्रत्येक बालक के विकास में महत्वपूर्ण है क्योंकि बालक समावेशी शिक्षा की सहायता से सामान्य रूप से शिक्षा ग्रहण करता है व स्वयं को सामान्य बालक के समान बनाने का प्रयास करता है। समावेशी वातावरण में प्रत्येक बालक सुरक्षित महसूस करता है एवं उसमें अपनत्व की भावना का विकास होता है। समावेशी शिक्षा व्यवस्था में विशेष आवष्यकता वाले बालकों को सामान्य बालकों के साथ मानसिक रूप से प्रगति के अवसर प्रदान किए जाते हैं जिससे प्रत्येक बालक रूचि के साथ कार्य करता है। दृष्टि बाधित बालक स्वयं को किसी भी प्रकार से अन्य बालकों से भिन्न नहीं समझता है एवं उसमें हीन भावना उत्पन्न नहीं होती। इस प्रकार समावेशी शिक्षा पद्धति बालकों की सामान्य मानसिक प्रगति में सहायक है।
समावेशी शिक्षा सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान करती है। इसके द्वारा बिना किसी भेदभाव के विशेष आवष्यकता वाले बालकों व सामान्य बालकों को एक ही पटल पर शिक्षा दी जाती है। शिक्षा का समावेशीकरण एक सामान्य छात्र और विकलांग छात्र को समान शैक्षिक गतिविधियों का अधिकार प्रदान करता है। समावेशी शिक्षा, शिक्षा के अधिकार को प्राप्त करने का एक सकारात्मक प्रयास है। इसका मुख्य उद्देश्य सभी बालकों को चाहे वह मानसिक, शारीरिक एवं संवेगात्मक रूप से कमजोर हो, बिना भेदभाव किए एक साथ शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध कराना है। सभी बालकों को सीखने की विधियों और गति में आपसी भिन्नता के बाद भी समावेशी शिक्षा सीखने के समान अवसर प्रदान करने पर बल देती है तथा यह विविधताओं और सभी बच्चों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु परम्परागत स्कूल व्यवस्था में परिवर्तन लाने का प्रयास करती है। इस प्रकार समावेशन को मुख्य धारा की शिक्षा व्यवस्था में सभी शिक्षार्थियों की स्वीकृति के रूप में भी स्पष्ट किया जाना चाहिए जहाँ पर विशेष आवश्यकता वाले बालकों को, सामान्य बालकों के साथ एक ही परिवेश में शिक्षा प्रदान की जाए और उनकी शिक्षा के लिए सभी शिक्षकों की जिम्मेदारी सुनिश्चित की जाए।
दृष्टि बाधित बालकों के विकास के लिए समावेशी शिक्षा तभी उपयोगी हो सकती है। जब वातावरण पर पूर्ण नियंत्रण एवं भेदभाव रहित शिक्षा हो जिससे समाज में नैतिकता की भावना, प्रेम, सहानूभूति, आपसी सहयोग जैसे गुणों का विकास होगा। आज समाज में बदलाव लाना है तो समावेशी शिक्षा को अधिक से अधिक प्रोत्साहन देना होगा। समाज में विशेष आवश्यकता वाले बालक अगर सामान्य बालकों की तरह शिक्षा प्राप्त करेंगे तो वह आत्मनिर्भर होकर समाज के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान कर पाएँगे।