खंड 43 No. 1 (2019): प्राथमिक शिक्षक
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शिक्षागत निवेश बनाम क्षमताओं का विकास

भूपेन्द्र सिंह
वरिष्ठ शोध अध्येता, शिक्षा विद्यापीठ, वर्धमान महावीर खुल्ला विश्वविद्यालय, कोटा, राजस्थान
पतंजलि मिश्र
सहायक आचार्य, शिक्षा विद्यापीठ, वर्धमान महावीर खुल्ला विश्वविद्यालय, कोटा, राजस्थान

प्रकाशित 2025-09-02

संकेत शब्द

  • पाठ्यचर्या,
  • पाठ्यक्रम,
  • पाठ्यपुस्तकें

सार

मनुष्य की उच्च मानसिक क्रियाएँ साहचर्य क्रियाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती हैं (वायगोत्स्की, 1962)। अतः सीखने का सटीक मंत्र यह है कि हज़ार असफलताओं के बावजूद अगले हर प्रयास के लिए बेझिझक, बिना थके और बिना हारे तैयार रहना। दरअसल शिक्षा में बदलाव की उम्मीदें तब दम तोड़ने लगती हैं, जब बच्चों की भागीदारी को अनदेखा किया जाने लगता है। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 में यह स्पष्ट किया गया है कि बच्चा स्वयं ज्ञान का सृजन करता है। इसका निहितार्थ है कि पाठ्यचर्या, पाठ्यक्रम एवं पाठ्यपुस्तकें, शिक्षक को इस बात के लिए सक्षम बनाएँ कि वे बच्चों की प्रकृति और वातावरण के अनुरूप कक्षायी अनुभव आयोजित करें, ताकि सभी बच्चों को अवसर मिल पाएँ। शिक्षण का वास्तविक उद्देश्य बच्चे के सीखने की सहज इच्छा और युक्तियों को समृद्ध करना होना चाहिए। यह लेख बच्चों की क्षमताओं का विकास करने हेतु प्राथमिक स्तर पर शिक्षागत निवेश के तरीकों को साझा करने का एक प्रयास है।