Vol. 44 No. 2 (2020): प्राथमिक शिक्षक
Articles

प्राथमिक शिक्षक-प्रशिक्षुओं की हिंदी भाषा वर्तनी में निपुणता का अध्ययन

अनु जी.एस.
असिस्टेंट प्रोफेसर, शिक्षक शिक्षा विभाग, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय
लता
शोधार्थी, शिक्षा विभाग
पी.डी. सुभाष
एसोसिएट प्रोफेसर, योजना एवं अनुश्रवण प्रभाग, एनसीईआरटी, नई दिल्ली

Published 2025-09-02

Keywords

  • शुद्ध वर्तनी,
  • भाषा के शुद्ध प्रयोग,
  • शिक्षक-प्रशिक्षुओं में व्याकरण के ज्ञान का अभाव

How to Cite

जी.एस. अ., लता, & सुभाष प. (2025). प्राथमिक शिक्षक-प्रशिक्षुओं की हिंदी भाषा वर्तनी में निपुणता का अध्ययन. प्राथमिक शिक्षक, 44(2), p.62-73. http://14.139.250.109/index.php/pp/article/view/4718

Abstract

ज्ञान के अर्जन के लिए भाषा के शुद्ध प्रयोग की आवश्यकता होती है जिसके निरंतर अभ्यास के लिए अध्यापक के मार्गदर्शन को आवश्यक माना गया है। वर्तमान समय में प्राथमिक स्तर के विद्यार्थियों में शुद्ध वर्तनी या लेखनी के अभ्यास की कमी का अनुभव किया गया है, जिसके निवारण में प्राथमिक शिक्षक-प्रशिक्षुओं की हिंदी भाषा वर्तनी में निपुणता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। प्रस्तुत अध्ययन में शोधार्थी ने प्राथमिक शिक्षक-प्रशिक्षुओं की हिंदी भाषा वर्तनी में निपुणता का अध्ययन करने के उद्देश्य से जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान से डी.एल.एड. के प्रथम एवं द्वितीय वर्ष के कुल 40 शिक्षक-प्रशिक्षुओं पर सर्वेक्षण विधि द्वारा अध्ययन किया। शोधार्थी ने इन शिक्षक-प्रशिक्षुओं की हिंदी भाषा वर्तनी को मापने के लिए हिंदी भाषा निपुणता परीक्षण पत्र में उनकी हिंदी भाषा में मात्राओं, स्वर, व्यंजन, अनुस्वार, अनुनासिक स्वर, संयुक्त एवं द्वित्व व्यंजन, रेफ प्रयोग, लिंग, वचन एवं विभक्ति, ध्वनियों, विराम चिह्नों आदि सहित अनुच्छेदों एवं कहानी लेखन से संबंधित वर्तनी की जाँच की। इस निपुणता परीक्षण पत्र में यह पाया गया कि शिक्षक-प्रशिक्षुओं के भाषा ज्ञान एवं वर्तनी निपुणता में कमी का मुख्य कारण स्वर एवं व्यंजनों के ज्ञान की कमी, मात्राओं के उचित प्रयोग से अनभिज्ञता तथा उनके व्यावहारिक प्रयोग की कमी है। शिक्षक-प्रशिक्षुओं में व्याकरण के ज्ञान का अभाव, अनुस्वार तथा अनुनासिक स्वर के सही प्रयोग के ज्ञान की कमी तथा प्रादेशिकता का प्रभाव देखा गया। लापरवाही एवं विराम चिह्नों के उचित प्रयोग संबंधी ज्ञान की कमी अनुभव की गई। प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षुओं में भाषिक ज्ञान की कमी के कारण रचनात्मक क्षमता में भी कमी पाई गई।