Published 2025-09-02
Keywords
- मूल्यों का क्षरण,
- विक्टर लॉन्फेल्ड का सिद्धांत,
- बच्चों में कलात्मकता के विकास
How to Cite
Abstract
भारत का कलात्मक इतिहास अत्यंत समृद्ध है परंतु स्वातंत्र्योत्तर भारत में अंग्रेजों द्वारा विकसित मैकाले की शिक्षा व्यवस्था सतत रहने के कारण शिक्षा का सरोकार मानवीय मूल्य एवं नैतिकता से दूर होता गया। शिक्षा 'भौतिकवादी' और 'बाज़ारवादी' होती गयी और जिसने मानवीय मूल्यों पर आधारित प्राचीन भारतीय समाज की सामाजिक व्यवस्था पर कुठाराघात किया, जिसका परिणाम विभिन्न सामाजिक विकृतियों के रूप में सामने आ रहा है। मूल्यों का क्षरण वैश्विक स्तर पर शिक्षाविदों की चिंता का विषय है। अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए जीवन में स्वतंत्रता एवं आनंद का महत्वपूर्ण स्थान है जो हमें विभिन्न कलाओं के माध्यम से सहज प्राप्य हो सकते हैं। अतः शिक्षा के इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु कला शिक्षा एक प्रमुख साधन हो सकती है। कलात्मक विकास की अवस्था का विक्टर लॉन्फेल्ड का सिद्धांत बच्चों में कलात्मकता के विकास का एक व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत करता है। इस लेख का उद्देश्य इक्कीसवीं सदी में कला शिक्षा के संदर्भ में बच्चों की कलात्मकता एवं कलात्मकता के विकास को समझने हेतु लॉन्फेल्ड के सिद्धांत की एक आलोचनात्मक व्याख्या प्रस्तुत करना है।