Published 2025-07-30
Keywords
- भाषा,
- भाषा नीति,
- बाज़ारीकरण
How to Cite
Abstract
समाज में भाषा न सिर्फ़ अभिव्यक्ति का माध्यम है, बल्कि भाषा वह माध्यम है जिससे हम अपने समय-समाज के परिवर्तनों को भी समझ सकते हैं। भाषा पर समाज के साथ-साथ संस्कृति, व्यवहार और सत्ताधीश शक्तियों का भी व्यापक प्रभाव होता है। भाषा की भूमिका को इस संदर्भ को समझने के लिए आज की जटिल परिस्थितियों की जटिलता को भी समझना होगा। इक्कीसवीं सदी की परिस्थितियाँ बीसवीं सदी से काफ़ी अलग हैं। आज हमारा समाज कॉम्प्लेक्सिव समाज है। भूमंडलीकरण ने सारी परिस्थितियों को बदल कर रख दिया है। बाजार से अलग किसी भी तत्व का स्वायत्त अस्तित्व नहीं रहा है। आज अमेरिकी संस्कृति के प्रभाव में अन्य संस्कृतियाँ एवं सभ्यताओं पर अस्तित्व का खतरा उत्पन्न हो गया है। आज शिक्षा के संदर्भ में इस संस्कृति के नकारात्मक प्रभाव को समझना बहुत आवश्यक है। भूमंडलीकरण के बाद धीरे-धीरे ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न हो गई हैं कि आज पूरा विश्व 'बाजार' द्वारा प्रचारित संस्कृति को ही अपनाने में लगा है। व्यवहार, रहन-सहन, मनोरंजन और भाषा तक आज इस प्रभाव से बच नहीं पाए हैं। यह दौर दूसरी गुलामी का दौर है। आज हम बाजार के माध्यम से उपनिवेश बनाए जा रहे हैं। इस उपनिवेशीकरण की प्रक्रिया मानसिक स्तर पर लागू की जा रही है इस कारण इसके परिणाम और अधिक घातक सिद्ध हो रहे हैं। यही कारण है कि विकासशील देशों की भाषाओं और संस्कृति पर खतरा मँडरा रहा है। हम जब तक इन खतरों को समझने में सक्षम नहीं होंगे तब तक इससे बचने के लिए स्वयं को तैयार नहीं कर पाएंगे।