Vol. 39 No. 1 (2015): प्राथमिक शिक्षक
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शिक्षा का गोल-गोलों का खेल

Published 2025-06-17

How to Cite

अग्निहोत्री प. (2025). शिक्षा का गोल-गोलों का खेल. प्राथमिक शिक्षक, 39(1), पृष्ठ 20-24. http://14.139.250.109/index.php/pp/article/view/4276

Abstract

बच्चा हमारी संपत्ति नहीं है और न ही खिलौना। वह तो हमारे पास परमात्मा और मनुष्यता की धरोहर है। वह समग्र सृष्टि का वह अंश है जो स्वयं में पूर्ण है। वस्तुतः पूर्णता का ही अस्तित्व संपूर्ण चराचर में है। विभाजन या छोटे-छोटे खंड हमारी सुविधा के लिए हैं। जीव-जड़ जगत का सारा प्रपंच (Phenomenon) अपनी अखंडता और समग्रता में ही चलता है।
सूरज, चंद्रमा, तारे, पेड़, पक्षी, जानवर, हवा, धूप-छाँव – सब स्वयं में पूर्ण होते हुए भी वास्तविक पूर्ण नहीं हैं। इन सबका समुच्चय, इनकी अविभाज्यता, इनकी अखंडता ही पूर्ण है। इस दृष्टि से ज्ञान तथा मानव संस्कृति वस्तुतः अखंड है। हम केवल सुविधा और समझ के लिए इन्हें बाँट लेते हैं, लेकिन पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति तभी हो सकती है जब हम इनकी अखंडता को समझें।