Abstract
शिक्षा के यथार्थ को भेदने में सुप्रसिद्ध शिक्षाविद गिजूभाई का कोई सानी नहीं। वे अध्यापक की लाचारी को जानते थे और व्यवस्था की क्रूरता को छुपाने की उन्हें जरूरत ना थी स्कूल की मरुभूमि में बच्चों की यातना उनसे न देखी गई और यही विवशता उनके शैक्षिक प्रयासों और लेखन का स्रोत बनी। गिजूभाई ने शिक्षा संबंधी अनेक किताबें लिखी है, जिनका हिंदी अनुवाद भी नहीं हुआ है। इन्हीं में से एक किताब है - ' शिक्षक हों तो '! यह पुस्तक मोंटेसरी बाल शिक्षण समिति राजलदेसर (चूरू) से प्रकाशित है। इस किताब का मूल्य तीस रूपये है। पुस्तक 'शिक्षक हो तो' के कुछ लेख नीचे दिए जा रहे है।