प्रकाशित 2025-06-20
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सार
जब कोई बच्चा पहली बार स्कूल में आता है तो उसके मन में कौन-कौन सी बातें चल रही होंगी, यह जानना आसान नहीं है। यह समझना भी उतना ही कठिन है कि स्कूल में नन्हे-मुन्ने बच्चों से ऐसे कौन-कौन से कार्य और गतिविधियाँ करवाई जाएँ कि उन्हें पता भी न चले कि उन्हें पढ़ाया जा रहा है और वे मज़े-मज़े में पढ़ना-लिखना सीख जाएँ। बच्चों के मन की बातों को जानना-समझना प्रत्येक शिक्षक की सबसे बड़ी जिज्ञासा होती है। इसी जिज्ञासा को शांत करने का प्रयास है यह लेख, जो एक बच्चे की स्वयं से या किसी दूसरे ‘अपने’ से बातचीत के रूप में है। यह बच्चा आपकी कक्षा का हो सकता है, पड़ोस का कोई बच्चा हो सकता है या आपके घर का भी हो सकता है। जिससे वह बात कर रहा है, वह उसका दोस्त, माँ या कोई ऐसा व्यक्ति हो सकता है जिससे बात करना उसे अच्छा लगता हो। बातचीत सच्ची भी हो सकती है और सच्चाई पर आधारित भी, परंतु इसे पढ़कर आपको उस रास्ते का संकेत अवश्य मिलेगा जिस पर चलकर आप बच्चों के पढ़ने-पढ़ाने की शुरुआत कर सकेंगे।