Abstract
यह तब की बात है जब मैंने विद्यालय में अध्यापिका के रूप में कार्य करना आरंभ किया था। पहली कक्षा के छोटे-छोटे बच्चों के हाव-भाव एवं मासूम सी हरकतों को देखकर मेरा मन आनंद से भर जाता था। इसलिए मैं विद्यालय पहुंच कर सर्वप्रथम पहली कक्षा में ही जाती थी। पहले तो बच्चों के साथ कुछ बातें करती उनसे कहती कि आप लोग अपनी-अपनी कॉपी पेंसिल निकाल लो। जो बच्चे कॉपी पेंसिल लाए थे उन्होंने तो निकाल ली किंतु कुछ बच्चे जैसे के तैसे बैठे रहे।