खंड 39 No. 01 (2018): भारतीय आधुनिक शिक्षा
Articles

राष्ट्रीय एकता और सपं र्क भाषा के रूप में हिं दी की भूमिका

प्रकाशित 2025-03-17

संकेत शब्द

  • अग्रेज़ी क ं े प्रभत्,
  • वैि‍श्‍वक भाष

सार

भारत में अग्रेज़ी क ं े प्रभत्व क ु े समर्थन में यह तर्क दिया जाता है कि यह एक वैि‍श्‍वक भाषा है, तकनीक और
विज्ञान की भाषा है,अतः यदि हमें इन क्षेत्रों में तरक्की करनी है और विश्‍व में अपना प्रभाव बढ़ाना है तो हमें इस
पर अधिकार बनाए रखना चाहिए। इस बारे में दसरा त ू र्क यह भी दिया जाता है कि अमरेिका व ब्रिटेन, जो दनिु या
में प्रभाव रखते हैं व विज्ञान के विस्तार में महत्वपरू भ्ण मिू का निभाते रह हैं, की भाषा अ े ग्रेज़ी है, ं अतः अग्रेज़ी पर ं हमारा अधिकार हमें स्वाभाविक रूप से समद्ध कर ृ ेगा। तीसरा तर्क यह दिया जाता है कि हमारी भारतीय भाषाओ में ं विभिन्नविषयों, विशष रूप स े ेविज्ञान से सं
बं
धित विषयों की शब्दावली का अभाव है। कहा जाता है कि यदि हमें
इन विषयों में हो रहेविकास और गति से सामजस ं ्य बैठाना है तो हमें अग्रेज़ी जाननी ही चा ं हिए और यह भी कहा
जाता है कि सभी विषयों से सं
बं
धित हिदं ी शब्दावली, जो सं
स्कृत से ली जाती है, समझनेव बोलने में इतनी कठिन
होती है कि इसे व्यवहार में नहीं लाया जा सकता। इसके ठीक विपरीत परातन ु वादी खमा अतीत की उपल े ब्धियों
को पश्‍च‍िम के ज्ञान और अध्ययन के क्षेत्रों में वर्तमान उपलब्धियों से श्रेष्‍ठ बताकर अग्रेज़ी को बाहर ं निकालने पर
आमादा रहता है। वहीं, प्रगतिशील ख़मा इस े े पोंगापं
थी कहकर यह भला
ु देता है कि इतने लं
बे सां
स्कृति क काल में
कोई भी सं
स्कृति ज्ञान और अध्ययन के क्षेत्रों में कुछ तो उपलब्धि रखती ही होगी और इनसे सं
बं
धित शब्दावली
भी उसकी भाषाओ में मौज ं दू होगी ही, क्योंकि शब्द केवल भाषा की अभिव्यक्‍त‍ि भर के लिए नहीं होते; वे
व्यवहार का माध्यम भी होते हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी वे उतने ही उपयोगी हो सकते हैं एवं
 ज्ञान और अध्ययन के
विभिन्न क्षेत्रों में हमें आगे बढ़ा सकते हैं। मातभाषाओ ृ में ं विभिन्न विषयों का अध्ययन इससे आसान बनाया जा
सकता है और ज्ञान एवं
 अध्ययन के सभी क्षेत्रों में देश के विकास को गति दी जा सकती है। लेकिन सं
पर्क भाषा
की आवश्यकता इन दो मानसिकताओ और प्र ं वत्ृतियों के बीच उलझकर रह जाती है और हम देखते हैं कि हमारी
राष्ट्रीय एकता पर ही प्रश्‍न चिह्
न लग जाता है। प्रस्तुत ल्तु ेख में इस मनःस्थिति और प्रवत्ृति पर प्रकाश डालने के
साथ वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारतीय भाषाओ कं े मध्य हिदं ी सं
पर्क भाषा के रूप में क्या योगदान दे सकती है? उसकी
इस सं
भावित भमिू का पर प्रकाश डाला गया है।