खंड 38 No. 04 (2018): भारतीय आधुनिक शिक्षा
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बहु भाषिकता गाँधीजी की भाषा नीति और भाषा चिंतन

प्रकाशित 2025-03-17

संकेत शब्द

  • समय और परिस्थितियो,
  • बहुभाषिक समाज

सार

भारतीय समाज एक बहुभाषिक समाज है, इस तथ्य से हम सब वाकिफ हैं,लेकिन हमारी शिक्षा नीति
और पाठ्यचर्या में इस तथ्य को किस तरह समाहित किया जाए कि हमारे बहुभाषिक समाज की विभिन्न
भाषाओ के मध ं ्य एक सामं
जस्य बना रहे और कोई भी भाषा विशेष स्वयं
 को अपेक्षित अनु
भव न करे,
इस बारे में बहुत गहनता से विचार नहीं किया गया है। बहुभाषिक समाज को एक सं
पर्क भाषा की भी
आवश्यकता होती ही है, इसे हमारी राजनीति ने अनं
त बहस का मु
द्दा बनाकर विदेश की एक ऐसी भाषा
को प्रतिष्‍ठा दे दी है जो हमारी जातीय अस्मिता से कतई मेल नहीं रखती। इस परिदृश्य में जब हम गाँधीजी
के भाषा सं
बं
धी विचार और चिं
तन का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि स्वतं
त्रता सं
ग्राम नेतृ
त्व के अपने
व्यस्ततम् दौर में भी उन्होंने आने वाले समय और परिस्थितियों, विशेष रूप से शिक्षा के क्षेत्र में भाषा
शिक्षण का क्या स्वरूप होना चाहिए और कै से इसे कार्यरूप में परिणित किया जा सकता है, इस पर गहराई
से चिं
तन किया था और आगे आने वाली कठिनाइयों को भाँपकर उन्हें दूर करने के उपाय भी दे दिए थे।
जो विचार उन्होंने प्रस्तुत किए थे वे मात्र सैद्धांति क नहीं थे, वरन् व्यावहारिक भी थे और आज भी हैं।
सिद्धांतों का व्यावहारिक निरूपण गाँधीजी के जीवन दर्शन का प्रस्थान बिं
दु रहा है, वे वही विचार प्रस्तुत
करते थे जिसे वह अपने जीवन में अपना चु
के होते थे। इसलिए गु
जराती होते हुए भी उन्होंने हिं
दी/ऊर्दू और
दक्षिण भारतीय भाषाएँ स्वयं
 सीखीं और बताया कि शिक्षा का माध्यम भले ही मातृ
भाषा हो, लेकिन देश
की एक सं
पर्क भाषा भी हो और हर देशवासी मातृ
भाषा के अलावा कम-से-कम एक अन्य प्रांत की भाषा
भी सीखे-जाने। एक बहुभाषिक राष्ट्र की भाषा नीति के लिए ये विचार बहुत महत्वपू
र्ण हैं और वर्तमान
परिदृश्य में यह और भी महत्वपू
र्ण हो जाते हैं, जबकि त्रिभाषा फ़ार्मूले पर आधारित हमारी भाषा नीति में
मातृ
भाषा और अं
ग्रेज़ी के बाद तीसरी भाषा के रूप में अन्य विदेशी भाषाओ को स ं ्थान दिया जाने लगा है
जबकि तीसरी भाषा हमारे देश के प्रांतों की भाषा भी हो सकती है, इस पर विचार भी नहीं किया जा रहा
है। इस लेख में हमारी भाषा नीति की इस विडं
बना को गाँधीजी के भाषा चिं
तन के प्रकाश में देखने का
प्रयास किया गया है और गाँधीजी के विचार किस तरह आज भी कार्यान्व‍ित किए जा सकते हैं, इस बारे
में सु
झाव भी दिए गए हैं।