प्रकाशित 2025-03-03
संकेत शब्द
- मुसकीं महिला,
- महिला सशक्तिकरण
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सार
यह अध्ययन समकालीन हिन्दी कहानी में मुसकीं (कठिन) महिला दशा और दिशा के निरूपण पर केंद्रित है, जिसमें यह विश्लेषण किया गया है कि कैसे हिन्दी साहित्य में महिलाओं की सामाजिक, मानसिक और शारीरिक समस्याओं को चित्रित किया गया है। समकालीन कहानीकारों ने महिलाओं की जीवन-यात्रा को समझने के लिए उनके संघर्षों, उत्पीड़न, और सशक्तिकरण की प्रक्रिया को विस्तार से पेश किया है। महिलाएँ समाज में अपनी जगह बनाने के लिए कठिन परिस्थितियों का सामना करती हैं, और ये कठिनाइयाँ कहानियों के रूप में पाठकों तक पहुँचती हैं।
समकालीन हिन्दी कहानीकारों ने महिलाओं की दशा को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा है, जैसे घरेलू हिंसा, शोषण, मानसिक तनाव, शिक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता की कमी, साथ ही साथ उनकी ताकत और संघर्ष के रूप में भी। विशेषकर, 21वीं सदी में हिन्दी कहानी में महिलाएँ अब केवल पीड़ित नहीं, बल्कि परिवर्तन की ओर अग्रसर होती हुई, आत्मनिर्भर और सशक्त पात्र के रूप में दिखाई देने लगी हैं। इन कहानियों में महिला पात्र अपने अस्तित्व, आत्म-सम्मान और स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ती हैं, और कहानीकारों ने उन्हें एक नई दिशा, आत्मविश्वास और सामाजिक बराबरी के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया है।