खंड 36 No. 04 (2016): भारतीय आधुनिक शिक्षा
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भारत में शिक्षा का निजीकरण व सामाजिक नय्य संबंधी जटिलतय

प्रकाशित 2025-01-03

संकेत शब्द

  • शिक्षा के व्यापारीकरण,
  • राज्य की जिम्मेदारी

सार

यह लेख भारत में शिक्षा के निजीकरण और सामाजिक न्याय के संदर्भ में उत्पन्न जटिलताओं पर विचार करता है। भारत में शिक्षा का निजीकरण, जो पिछले कुछ दशकों में तेजी से बढ़ा है, ने शिक्षा व्यवस्था में महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं, लेकिन इसके साथ ही यह सामाजिक असमानताओं, वर्गीय भेदभाव, और न्याय के सिद्धांतों के प्रति गंभीर प्रश्न भी उठाता है।

लेख में यह चर्चा की गई है कि निजीकरण ने शिक्षा के व्यापारीकरण को बढ़ावा दिया है, जिससे प्राइवेट स्कूलों और कॉलेजों में शुल्क और पाठ्यक्रम में भेदभाव बढ़ गया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि कम आय वाले वर्गों, मूल निवासियों और वंचित जातियों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच कठिन हो गई है। इसके अलावा, शिक्षा में निजीकरण ने विभाजन और भेदभाव को बढ़ावा दिया है, जिससे सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को चुनौती मिलती है।

यह लेख यह भी विश्लेषण करता है कि कैसे निजीकरण के परिणामस्वरूप, शिक्षा का एक बड़ा हिस्सा व्यक्तिगत लाभ के उद्देश्य से संचालित होने लगा है, और इससे सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता में गिरावट आई है। सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण से, यह वंचित वर्गों के अधिकारों को नकारता है, क्योंकि निजी शिक्षा संस्थान अधिकतर आर्थिक रूप से सक्षम छात्रों को प्राथमिकता देते हैं, और इससे समाज में असमानता और सामाजिक दूरी बढ़ती है।