खंड 44 No. 1 (2020): प्राथमिक शिक्षक
Articles

वाह! क्या दिन हैं?

सरोज यादव
प्रोफेसर एवं डीन (अकादमिक), राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद, नई दिल्ली

प्रकाशित 2025-09-02

सार

इक्कीसवीं सदी में स्त्री व पुरुष कंधा से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रहे हैं। दोनों ही अपनी हर ज़िम्मेदारी का निर्वाह समान रूप से कर रहे हैं। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहाँ महिलाओं ने अपने पैर न जमाएँ हो, परंतु आज भी सामाजिक रूढ़ियों व दकियानूसी मानसिकता के चलते महिलाओं और पुरुषों के बीच भेदभाव देखने को मिलता है। यह कहानी वर्तमान समय में भी हो रहे जेंडर आधारित भेदभावों को दशनि का प्रयास करती है और बताती है कि किस तरह हमारे देश में लड़कियों को दोयम दर्जे का मानकर उनके साथ आजीवन भेदभाव होता है। जहाँ लड़की के जन्म पर किसी भी प्रकार का उत्सव नहीं मनाया जाता वहीं, लड़के के जन्म पर माँ का भी अच्छे से ख्याल रखा जाता है और लड़के और लड़कियों में शिक्षा, स्वास्थय, खानपान, बाहर जाने की अनुमति इत्यादि में भी भेदभाव होता है।

यह कहानी लड़के और लड़कियों के बीच भेदभाव न करने व इन भेदभावों के प्रभावों पर भी बात करती है साथ ही परिवार और समाज की सोच को बदलने पर बल देती है। कोई भी देश अपनी आधी आबादी को पीछे छोड़कर आगे नहीं बढ़ सकता। आवश्यकता यह है कि परिवार की सोच बदले तथा दोनों को जीवन जीने के समान अवसर मिले। स्त्री-पुरुष के कार्यों का निर्धारण उनकी क्षमताओं, योग्यताओं व रुचियों के आधार पर हो। तभी समाज सही मायनो में आगे बढ़ सकता है। समाज में समानता लाने के लिए सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों को सार्थक बनाने हेतु हम सभी को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है।