खंड 43 No. 1 (2019): प्राथमिक शिक्षक
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शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में शिक्षण-अधिगम विधि एवं शिक्षण-अधिगम सामग्री की महत्ता (क्रियात्मक शोध)

चित्ररेखा
प्रवक्ता, जिला संसाधन इकाई (डी.आर.यू. विभाग), मण्डलीय शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, नई दिल्ली
मनोज कुमार
टी.जी.टी., सोशल साइंस (शिक्षा विभाग), गवर्नमेंट बॉयज सीनियर सेकेंडरी स्कूल, नई दिल्ली

प्रकाशित 2025-09-02

सार

अधिकतर शिक्षार्थी उस विषय-वस्तु को पढ़ने व सीखने में ज़्यादा आनंद लेते हैं, जो कि उनके आस-पास के परिवेश से जुड़ी हो, जिससे उन्हें कुछ करके सीखने का मौका मिलता हो। वे उसी के बारे में सुनना, समझना व बताना चाहते हैं। परंतु सबसे बड़ी विडंबना यही है कि हम अपने शिक्षार्थियों को बोलने, कुछ करने व उन्हें अपने अनुभव को साझा करने के पर्याप्त अवसर ही नहीं देते, बल्कि अपना ज्ञान व पाठ्यचर्या का ज्ञान ही उन पर थोपते रहते हैं। पाठ्यक्रम व पाठ्यचर्या की विषय-वस्तु को उनके दैनिक जीवन के अनुभवों से जोड़ने का प्रयास नहीं करते और उनकी स्वतंत्र अभिव्यक्ति व कल्पनाशीलता पर स्वयं ही जाने-अनजाने में ताला लगा देते हैं। जिसके कारण अधिकांश शिक्षार्थी मानसिक रूप से पढ़ने को तैयार नहीं हो पाते। कक्षा में उपस्थित होते हुए भी पढ़ने में उनकी रुचि नहीं बन पाती। पढ़ने के प्रति रुचि को बढ़ाने में शिक्षण-अधिगम विधि, शिक्षण-अधिगम सामग्री व बच्चों के स्वयं के अनुभव किस प्रकार से सहायक हो सकते हैं? क्या शिक्षण-अधिगम विधि के माध्यम से शिक्षार्थियों की सृजनात्मकता, अभिव्यक्ति व कल्पनाशीलता में उड़ान भरना व उन्हें अपने ज्ञान का स्वयं सृजन करने का मौका दिया जा सकता है? शिक्षण-अधिगम सामग्री का प्रयोग कहाँ, किसके लिए और क्यों किया जाए? यह लेख इन सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डालने के साथ-साथ सेवाकालीन शिक्षकों व प्रशिक्षार्थी-शिक्षकों को शिक्षण अधिगम प्रकिया के संदर्भ में उनकी भूमिका से उन्हें अवगत कराने का प्रयास करता है।